लुका-लुका के रोवइयामन, कान खोल के सुन लौ रे ।
फोकट-फोकट आँसु झरइया, बात मोर ये गुन लौ रे ।।
हार-जीत सिक्का कस पहलू, राखे जीवन हर जोरे ।
एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।।
सपना आखिर कहिथें काला, थोकिन तो अब गुन लौ रे ।
आँसु सुते जस आँखी पुतरी, मन मा पलथे सुन लौ रे ।।
टुटे नींद के जब ओ सपना, का बिगड़े हे तब भोरे ।
एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।।
काय गँवा जाथे दुनिया मा, जिल्द ल बदले जब पोथी ।
रतिहा के घोर अंधियारी, पहिरे जब घमहा धोती ।।
कभू सिरावय ना बचपन हा, एक खिलौना के टोरे ।
एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।।
कुँआ पार मा कतका मरकी, घेरी-बेरी जब फूटे ।
डोंगा नदिया डूबत रहिथे, घाट-घठौंदा कब छूटे ।।
डारा-पाना हा झरथे भर, घाम-झांझ कतको झोरे ।
एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।।
काहीं ना बिगड़य दर्पण के, जब कोनो मुँह ना देखे ।
धुर्रा रोके रूकय नहीं गा, कोखरोच रद्दा छेके ।।
ममहावत रहिथे रूख-राई, भले फूल लव सब टोरे ।
एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।।
-रमेश चौहान