नदिया-नरवा जलधार बिना, जइसे अपने सब इज्जत खोथे ।
मनखे मन काम बिना जग मा, दिनरात मुड़ी धर के बड़ रोथे ।।
बिन काम-बुता मुरदा जइसे, दिनरात चिता बन के बरथे गा ।
मनखे मन जीयत-जागत तो, पथरा-कचरा जइसे रहिथे गा ।।
सुखयार बने लइकापन मा, पढ़ई-लिखई करके बइठे हे ।
अब जांगर पेरय ओ कइसे, मछरी जइसे बड़ तो अइठे हे ।।
जब काम -बुता कुछु पावय ना, मिन-मेख करे पढ़ई-लिखई मा
बन पावय ना बनिहार घला, अब लोफड़ के जइसे दिखई मा ।।
पढ़ई-लिखई गढ़थे भइया, दुनिया भर मा करमी अउ ज्ञानी ।
हमरे लइका मन काबर दिखते, तब काम-बुता बर मांगत पानी ।
चुप-चाप अभे मत देखव गा, गुण-दोष ल जाँचव पढ़ई लिखई के ।
लइका मन जानय काम-बुता, कुछु कांहि उपाय करौ सिखई के ।।