आकार कार्यशाला पारंपरिक हस्तकला शिल्प प्रशिक्षण शिविर का आज पांचवा दिन। विभिन्न कलाए सिखने उमड़ रही लोगो की भीड़। 600 से अधिक प्रशिक्षार्थी सीख रहे विभिन्न कलाए। अंतिम दिन लगेगी, प्रदर्शनी व प्रशिक्षुओं को बाटे जाएंगे प्रमाण पत्र।
नीचे ढोकरा आर्ट सीख रहे प्रशिक्षुओं की फोटोज शेयर की जा रही है। जिसे धनीराम झोरका जी व उनकी पत्नी धनमति बाई झोरका जी, जो रायगढ़ के निवासी है, जिन्हें अपनी ढोकरा पारंपरिक शिल्पकला के लिए राष्ट्रपति अवार्ड से नवाजा जा चूका है तथा ये विभिन्न देशों फ्रांस, मंगोलिया तथा सऊदी अरब में तथा भारत के लगभग सभी राज्यो में ढोकरा आर्ट को भारत सरकार के ओर से प्रस्तुत कर चुके हैं।
इस कला में पीतल की धातु से बनी मूर्तियां निर्माण की जाती है, जिसे देखने में जितना आनंद आता है, उतनी ही कठिन इसकी निर्माण प्रक्रिया है। ढोकरा आर्ट में पीतल की मूर्ति बनाने की प्रक्रिया नीचे दी जा रही है-
1. पिली मिट्टी में धान के छिलके (बड़े व महीन) को मिलाकर मूर्ति का आकार दिया जाता है।
2. बनी मूर्ति को धुप में सुखाया जाता है, फिर सूखे हुए मिट्टी की मूर्ति पर गोबर व नदी किनारे की रेतीली मिट्टी को छान कर एक परत चढ़ा कर फिनिशिंग दी जाती है।
3.फिर इसे सुखाने के बाद, मधुमक्खी के छत्ते से बनी मोम व सरई पेड़ की लकड़ी से बनी धुप को मिलकर पकाई हुई मिश्रण से लेप किया जाता है।
4. इसी मोम के मिश्रण से धागा बनाकर उसे मिट्टी की मूर्ति पर मोटे धागे से लपेटा जाता है तथा पतले धागे से डिजाईन बनाया जाता है।
5. इस तरह से तैयार मूर्ति पर दो परत मिट्टी की चढ़ाई जाती है, फिर धुप में सुखा दिया जाता है, जिससे साचे का निर्माण होता है।
6. अंतिम चरण में इस साचे को भट्ठी में डालकर उस पर गला हुआ पीतल डाला जाता है, जो मोम का स्थान ले लेता है व पीतल की बनी मूर्ति तैयार हो जाती है।