माँ महालक्ष्मी जी की जो सिद्धमूर्ति अभी मंदिर में विराजमान वह स्वयंभू है, मंदिर के निकट अभी जहाँ कुआँ है, उसी स्थान से महालक्ष्मी जी मूर्ति को 200 वर्ष पूर्व जमीन से खोदकर निकाला गया था।
मूर्ति के प्राप्त होने की कथा- नवागढ़ में एक ब्राम्हण थे, जिनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए वह संतान की याचना करने रतनपुर के लखनी (एकवीरा) देवी के मंदिर गया, वहाँ एक आसन में बैठकर 9 दिनों तक उन्होंने देवी की आराधना की। 9वे दिन सिद्धिदात्री रात्रि के वक्त मां लखनी देवी उनके कानों में आकर के कहने लगी कि मेरी छोटी बहन तुम्हारे ग्राम नवागढ़ में है, अमुक स्थान में जमीन के नीचे मूर्ति दबी हुई है, जमीन की खुदाई करवाओ, मंदिर बनवाओ, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाओ, तो तुम्हारे घर मे 5 संताने होंगी। 2 बेटे होंगे, 3 कन्याएं होंगी और कन्याओं का वंश चलता रहेगा, ऐसा आशीर्वाद माता लखनी देवी ने दिया। फिर पंडितजी नवागढ़ आए और पंडितों से सलाह ले कर गस्ती पेड़ के नीचे सुरकी तालाब के पास जमीन की खुदाई की,जिससे वहाँ माँ महालक्ष्मी जी की मूर्ति प्राप्त हुई । तत्पश्चात माँ महालक्ष्मी जी की पूजा अर्चना कर विधिवत स्थापना की गयी, जिससे उस ब्राम्हण को सन्तान की प्राप्ति हुई ।
चतुर्भुजी हैं माँ महालक्ष्मी - पर मंदिर के पुजारी मनोज उपाध्याय जी की माताजी के अनुसार माँ महालक्ष्मी जी की चार भुजाएं हैं, जिसमें ऊपर के एक हाथ में कमल दूसरे में वर मुद्रा तथा नीचे के एक हाथ में गदा व दूसरा हाथ भी वरद मुद्रा में है।
माँ लक्ष्मी जी की मूर्ति के निचे जो छोटी मूर्ति है, उसकी स्पष्ट संज्ञा नही है, परंतु कई उन्हें महालक्ष्मी जी का वाहन मानते है। लक्ष्मी जी का वाहन उलूक को माना गया है,यद्यपि यहाँ जो छोटी मूर्ति है, उसका स्वरूप उलूक से भिन्न प्रतीत होता है।
चतुर्भुजी हैं माँ महालक्ष्मी - पर मंदिर के पुजारी मनोज उपाध्याय जी की माताजी के अनुसार माँ महालक्ष्मी जी की चार भुजाएं हैं, जिसमें ऊपर के एक हाथ में कमल दूसरे में वर मुद्रा तथा नीचे के एक हाथ में गदा व दूसरा हाथ भी वरद मुद्रा में है।
मंदिर का निर्माण- नवागढ़ में एक थानेदार थे, एक बार वो किसी केस में फंस गए, तो महालक्ष्मी जी के पास आकर अर्जी विनती किये, कि यदि मै केस जीतने पर आपका छाया बनवाऊंगा, केस में थानेदार जीत हुई, जिससे उसने सन1813 में लक्ष्मी जी का मंदिर बनवाया।
प्राचीन कुआँ- जिस स्थान पर खुदाई से माँ महालक्ष्मी जी की मूर्ति प्राप्त हुई, वहाँ गड्ढा हो जाने के कारण कुए का रूप दे दिया गया, यह एक अद्वितीय कुंआ है, जिसका जल अभिमंत्रित किया हुआ है, जिसके लिए श्रद्धालू बड़े दूर-दूर से जल लेने के लिए आते थे तथा कुँए का जल निकालकर पहले खेतों में रोग ना आवे कह कर डालते थे ।
ज्योति कक्ष- ज्योति कक्ष का निर्माण सन 2007 में किया गया, जहाँ नवरात्री के पर्व पर घृत एवं तेल की ज्योति जलवाने बड़े दूर दूर से श्रद्धालुजन आते है।
ब्रह्मदेव- माँ महालक्ष्मी जी के मंदिर के पास जहाँ दो पीपल के पेड़ है, उसमे दो मुर्तिया स्थापित है, जिसे कोई ब्रह्मदेव तो कोई बरम बाबा कह कर पुकारते है।
स्रोत:
{1} पं. सोमप्रकाश उपाध्याय
{2}रामनाथ ध्रुव जी
{3}सुरेंद्र चौबे जी
स्रोत:
{1} पं. सोमप्रकाश उपाध्याय
{2}रामनाथ ध्रुव जी
{3}सुरेंद्र चौबे जी