जब मंदिर का निर्माण शुरू हुआ, तब झामिन बाई (पति छन्नूलाल गुप्ता) को भी देवी की शक्ति आने लगी, तो वे लोग माँ शारदा की मूर्ति जयपुर से खरीद कर लाए।{1}
और उनकी अनुपम कृपा से उस टिले में विगत 1973-74 से लेकर मंदिर के निमाणाधीन होते तक, दोनों पर्वो में उपासना में बिना किसी अन्न ग्रहण किए, नौ दिनों तक निरंतर आराधना करते रहे ।{2}जिसके परिणाम स्वरूप श्री विष्णु प्रसाद जी मिश्रा, श्रीमान मुरेन्द्रधर दीवान जी की अनुशंसा, सहयोग से फिर प्रत्येक लोगों के तन मन धन एवं अथक प्रयास से ग्राम के प्रतिषिठत नागरिक श्री छन्नू प्रसाद जी गुप्ता के द्वारा श्री शारदा मा की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा मंदिर निर्माणधीन के पश्चात शुभ मुहुर्त और बेला में संवत 2036 में माघ बसंत पंचमी दिनांक 25/01/1996 को आचार्य पंडित राम रतन त्रिपाठी लोरमी द्वारा किया गया।{1}{2}
आज मां शारदा का मंदिर आस्था और उपासना का केन्द्र है । दोनों पर्वो में भक्तों द्वारा ज्योति प्रज्वलित की जाती है ।टीला- ऐसा कहा जाता है जिस स्थान पर मां शारदा का मंदिर बना है, मूर्ति विराजमान है वहां लगभग समान्य धरातल से 200 फीट का उंचा टीला था, वह टीला राजा नरवरसाय का मार्ग दर्शक था ।{2}
उस टीले के उपर कहा जाता है 200 फीट उची सीढ़ीनुमा एक चबुतरा था । विशेष परिस्थितियों में उस चबुतरे में चढ़कर राजा चारों दिशाओं में 15 मील की दूरी तक के देख सकते थे । जहां राजा के विशेष सैनिक बैठ कर पहरा देते हुए रक्षा करते थें इस प्रकार से उक्त टीला किले की रक्षा के लिए बना हुआ था, जहां मां की कृपा से शारदा मंदिर विराजमान है । {2}
शिवमंदिर- शारदा मंदिर के पूर्व में शिव मंदिर यादव समाज द्वारा निर्माण कराया, सन 1992 में।
शनि देव का चबूतरा- शारदा मंदिर के उत्तर में शनि देव का चबूतरा है जिसको ईश्वर चंद पिता अमोलक चंद जैन जी द्वारा सन 2007 में निर्माण कराया गया।
वाटिका- मंदिर के पास में सन 2015 में वाटिका बनाया गया है।
स्रोत -
{1} रामनाथ ध्रुव जी
{2} सुरेंद्र चौबे जी