16 March 2017

भैरव बाबा का इतिहास


मूर्ति की स्थापना - महामार्इ के ठीक उत्तर में लगभग 500 मीटर की दूरी पर प्रसिद्धी प्राप्त भैरव बाबा की  मूर्ति आज भी विराजमान  है । राजा समय का मूर्ति क्षतिग्रस्त हो जाने से पुरानी क्षतिग्रस्त मूर्ति को पीपल के निचे रख दिया गया है 





तथा विष्णु प्रसाद मिश्रा महापात्र जी के द्वारा नया मूर्ति लाया गया , मूर्तिकार कार्तिक राम मरकाम (ग्राम-जानो,धमधा)  से सन 1979 में लाया गया, जिसकी  प्राण प्रतिष्ठा पंडित मथुरा प्रसाद पुरोहित द्वारा तांत्रिक विधि से कराया गया है।

मंदिर का निर्माण- पहले चबूतरा छोटा था, उसे श्री बी. एस. भारती, (जो ब्लॉक में इंजिनियर थे), उन्होंने सन 2008 में  मंदिर बनवा कर, पुनः भैरव बाबा की पूजा, पंडित नर्मदा प्रसाद व पंडित अशोक प्रसाद द्वारा करवा कर दिनांक 14/08/2008, दिन-सोमवार को  स्थापना किया ।


भैरव बाबा के पास कष्ट निवारण हेतु भक्तजन अर्जी विनती करते है, उन्हें लाभ मिलता है, वहाँ दोनों नवरात्रि में श्रद्धालु ज्योति जलवाते हैं।
सुरंग- कहा  जाता है पहले महामार्इ के मंदिर से सीधे भैरव बाबा के मंदिर तक तथा भैरव बाबा के मंदिर से लेकर राजा के किले का मुख्यद्वार तक, जहां उसका द्वारपाल रहता था, सुरंग था । 

साथ ही एक और सुरंग था, जो भैरव बाबा के मंदिर से चांदाबन तक जाता था , जिसका उपयोग राजा अपने किले से गुप्तचरों द्वारा पता लगाने के लिए तथा आपातकाल में बाहर निकलने के लिए करते थे ।  मानना है कि राजा नरवरसाय ने इस सुरंग को स्वयं बनवाया था ।  राजा नरवरसाय का 55 वर्ष तक नवागढ़ में राज्य था। 

गढ़काली देवी- भैरव बाबा के बाजू में गढ़काली देवी  है, ऐसा पुजारी बताते है, ये देवी गढ़ की रक्षा करती हैं।

स्रोत:
{1}रामनाथ ध्रुव जी 
{2}सुरेंद्र चौबे जी 
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