बायी ओर सती जी व दायीं ओर दुर्गा जी |
इतिहास- मंदिर के पुजारी जी के अनुसार, श्री जयंत आचार्य, दिलीप आचार्य ये महाराष्ट्र के निवासी थे, नवागढ़ में इनकी संपत्ति थी। इसी स्थान पर पति के वियोग में उनके परिवार की स्त्रियां सती हुई थी। उसी के यादगार में यहाँ मूर्ति की स्थापना की गयी थी और एक चबूतरा बनवाया गया था।
कालांतर में इसका नाम सती मंदिर से शक्ति मंदिर पड़ गया। जयंत आचार्य के मार्गदर्शन से ही जनता के सहयोग से मंदिर का निर्माण कराया गया है।
सती दुर्गा जी का ही स्वरूप है। माँ दुर्गा के दुर्गा सप्तसती में 108 नाम है, जिनमे सती भी एक है।
मंदिर का निर्माण - पहले चांदाबन तालाब के किनारे, इमली झाड़ के पास आदि देवी माँ शक्ति का छोटा सा मंदिर था।बाद में जिसे चंदा कर एवं ट्रक वाले जब ईटा, पत्थर, रेती, गिट्टी इस मार्ग से ले जाते तो, यहाँ हर ट्रिप में गिराया करते थे, मुरता वाले भी बहुत सहयोग देकर मंदिर, कलश, ज्योति कक्ष एवं हनुमान मंदिर बनवाए।
जिसका तीसरी बार जीर्णोद्वार श्री चैन साहू मुरता के मार्गदर्शन से सन 2012 में हुआ।
दोनों नवरात्री में श्रद्धालु लोग ज्योति जलाते हैं, जिसकी संख्या दिनों दिन बढ़ रही है, यहाँ आने वाले की सारी मनोकामनाए पूर्ण होती है।
ज्योति कलश- सन 1989 में मात्र एक ज्योति प्रज्वलित होकर सन 2012 मे 365 ज्योति नवरात्री पर्व में प्रज्वलित हुयी है ।
स्रोत:
{1}पुजारी नन्द कुमार मिश्रा जी
{2}सुरेंद्र चौबे जी
{3}रामनाथ ध्रुव जी