आज जलती हुई,
चिता देखकर,
उसमें मैंने,
ढूंढ़ने का प्रयास किया,
वह गर्व, अभिमान,
यश, अहंकार,
शक्ति, साहस,
जो साँसों का,
वहम मात्र था,
किन्तु कुछ भी,
नहीं दिखा मुझे,
तब सिद्ध
हो ही गया कि,
मैं लाख दावे कर लूँ,
पर हकीकत यही कि,
मेरी कोई औकात,
नहीं है,
मैं मिट्टी ही था,
जो मिट्टी में मिल गया।
21 May 2018
Home »
मनोज श्रीवास्तव जी की रचनाएं
» मैं मिट्टी ही हूँ