आवाहन करता हूँ मैं,
सुकुमारी सुकन्याओं का,
पग-पग अग्नि परीक्षा देती,
सबला बालाओं का,
ज्ञात हो कि
कानून तुम्हारा रखवाला,
नहीं है,
यहाँ चीरहरण,
रोकने वाला,
गोपाला नहीं है,
अपनी रक्षा तुम्हें,
स्वयं करनी होगी,
खुद की पीड़ा खुद ही,
हरनी होगी,
इसलिए,
लक्मी, दुर्गा, काली बनो,
स्वयंभू और बलशाली बनो,
मनचलों में अपार
भय बाँट दो,
दुश्चरित्रान्धों को,
टुकड़ों में काट दो,
खड्ग ले बस,
लड़ते ही रहना,
पर लाचार विधान से,
कभी उम्मीद मत करना,
कृष्ण भी तुम हो,
द्रोपदी भी हो,
काल भी तुम हो,
सदी भी हो,
अब से एक नया,
अध्याय बन जा,
खुद के लिए खुद ही,
न्याय बन जा।
21 April 2018
Home »
मनोज श्रीवास्तव जी की रचनाएं
» आवाहन