25 February 2018

पहचान सिमट रही है

पहचान सिमट रही है

जैसे-जैसे बुजुर्गों की,
हस्तियां मिट रही हैं,
वर्तमान पीढ़ी की,
पहचान सिमट रही है,
क्या थे, क्या हो गए!
दिखावे की दुनिया में,
चित सो गए,
स्वार्थ के दायरे में,
अपनत्व की आयु,
हर पल घट रही है,
वर्तमान पीढ़ी की पहचान,
सचमुच सिमट रही है।

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