मोबाईल में तकरार,
फेसबुक में इजहार,
वाट्सएप में प्यार,
मर्यादाओं का गहना
कहीं खो रहा है,
सचमुच युवा
डिजिटल हो रहा है!
आधुनिकता की गलियों में,
रिलेशन और ब्रेकअप
का ढोल है,
माँ-बाप के सपने बेचे
कौड़ियों के मोल हैं,
शिक्षा के बिस्तर में 'संस्कार'
चैन की नींद सो रहा है,
सचमुच युवा
डिजिटल हो रहा है!
कर्तव्य को पड़ रही,
हर जगह लातें हैं,
केवल और केवल
अधिकार की बातें हैं,
जिम्मेदार अपनी
व्यावहारिकता ढो रहा है,
सचमुच युवा
डिजिटल हो रहा है।
दलों के शीर्ष में,
गन्दगी और बेहयाई है,
राजनीति के कोठे में,
नगरवधु 'सच्चाई ' है,
दर्पण भी,
पलकें भिगो रहा है,
सचमुच युवा
डिजिटल हो रहा है।
हर जगह छल-कपट का पर्त है,
चरित्र के पैरों में गर्त है,
यह देख!
विश्वगुरु का
स्वामी भी रो रहा है,
सचमुच युवा
डिजिटल हो रहा है!
08 February 2017
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