08 February 2017

चटकारा

चटकारा
घर म खा लीस,
पी लीस डकार दीस,
ओतको म ताकाझाॅंकी,
करत हे परासी घर,
अउ कोलकी-कोलकी जाके,
खोजत हे भंडारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा,
हटर-हटर करई म,
बीतगे जिंदगानी,
पइसा के खातिर करे,
चोरी-चमारी बइमानी,
सियानी के बेरा म,
करे नहीं सियानी,
अब ढलती उमर म,
सिरागे सब चारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा,
सुआरी लइका के भोभरा म,
सुग्घर परगे संगवारी,
चारो मुड़ा  घूम-घूम मछराए,
अड़बड़ मनाये तैं तिहारी,
मेहमानी रहिस एक झन के,
तभो पेलेव झारा-झारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा,
चारो मुड़ा रहिस चिखला,
तभोले आके धॅंसगे,
जीवन भर फॅंसाए दूसर ल,
अब अपने-अपन तैं फॅंसगे,
भुॅंइया म  गोड़ तोर,
माढ़बे नइ करिस,
अउ अब कहत हस,
मोला उबारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा ।।
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