मानव मन की दुकानों में,
रिश्तों का व्यापार न हो,
मर्यादा से खेले कोई,
इतना सस्ता प्यार न हो,
सर्वधर्म को प्रेरित करिए,
भेदभाव का द्वार न हो,
स्नेह रहे जी सबका सबसे,
व्यक्तिवाद के बीमार न हों,
एकता के सुर में सुर हो,
कौम विरोधी गद्दार न हो,
देशहित को गौण करे जो,
ऐसी कोई सरकार न हो।।
रिश्तों का व्यापार न हो,
मर्यादा से खेले कोई,
इतना सस्ता प्यार न हो,
सर्वधर्म को प्रेरित करिए,
भेदभाव का द्वार न हो,
स्नेह रहे जी सबका सबसे,
व्यक्तिवाद के बीमार न हों,
एकता के सुर में सुर हो,
कौम विरोधी गद्दार न हो,
देशहित को गौण करे जो,
ऐसी कोई सरकार न हो।।