पाई-पाई का हिसाब
देने की तैयारी है,
पूर्वार्द्ध के पन्नों पर
उत्तरार्द्ध भारी है।
उम्र का क्षणिक दौर
फिसल रहा हर क्षण,
पद-प्रतिष्ठा-नाम की चाह
जिन्दगी ने हारी है।
जली हुई राख से टूटा
तिनका जोड़ने का भ्रम,
जीवन रुपी मृग का स्वयं
महाकाल शिकारी है।।
देने की तैयारी है,
पूर्वार्द्ध के पन्नों पर
उत्तरार्द्ध भारी है।
उम्र का क्षणिक दौर
फिसल रहा हर क्षण,
पद-प्रतिष्ठा-नाम की चाह
जिन्दगी ने हारी है।
जली हुई राख से टूटा
तिनका जोड़ने का भ्रम,
जीवन रुपी मृग का स्वयं
महाकाल शिकारी है।।