सियासत की बिसात पर,
विश्वास की भी अति है।
दिकभ्रमित करते चाटुकार,
विक्षिप्त हो रही मति है।।
29 November 2018
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मनोज श्रीवास्तव जी की रचनाएं
» अति है
सियासत की बिसात पर,
विश्वास की भी अति है।
दिकभ्रमित करते चाटुकार,
विक्षिप्त हो रही मति है।।