हारा नहीं हूँ अब तक,
विस्वास अभी बाकी है,
मेरे जीवन का अंतिम,
प्रयास अभी बाकी है।
पन्ने पलट गए हों बेशक,
अपभ्रंश भरे शब्दों के,
साहित्य के सफर में,
इतिहास अभी बाकी है।
काफिले ठहर गए,
मुसाफिरी भी ठहरी है,
उम्मीद के मंजिलों की,
प्यास अभी बाकी है।
शख्सियत मुकम्मल है,
पहचान भी मिली है,
रूह में आदमियत का,
आभास अभी बाकी है।
टुकड़े तो कई हुए हैं,
विचार छलनी भी हुए,
प्रखर प्रज्ञा नेतृत्व की,
आस अभी बाकी है।
भेद की प्रचण्डता से,
राष्ट्रशक्ति गौण हुई,
देशहित में भेंट चढ़ने,
दास अभी बाकी है।
04 September 2018
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