प्रजातांत्रिक देश है पर,
प्रजा का तंत्र कहाँ है,
समरसता से लड़ी लड़ाइयाँ,
वह एकता का मंत्र कहाँ है!
अंग्रेज आये थे व्यापारी बन,
मेरे देश को बाँट गए,
यहाँ भी थे लावारिस स्वान,
फिरंगियों के तलवे चाट गये,
वही स्वान अब देश में
जगह जगह भौंक रहे हैं,
पश्चिम के अंश आज भी,
देश में धौंक रहे हैं,
स्वाधीनता के बाद भी
देश स्वतंत्र कहाँ है!
प्रजातांत्रिक देश है पर,
प्रजातंत्र कहाँ है,
लड़ाई-झगड़े, मार-काट,
हो चला आम है,
दोगलों के सर पर ताज,
हरिश्चंद्र बदनाम है,
संस्कार में ये कैसा दुर्गंध है,
बलात्कारियों के हौसले बुलंद हैं,
न्यायकर्ता के मुख पर ताले हैं,
कानून के पैरों में छाले हैं,
मरकर देश को जिंदा रखा उन,
तपस्वियों का अभिमन्त्र कहाँ है!
प्रजातांत्रिक देश है पर,
प्रजा का तंत्र कहाँ है!!!
08 May 2018
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