दाई, दाई! ददा हर,
काबर बर्रावत हे,
घेरी-बेरी रहिके,
मेचका कस टर्रावत हे,
पूछथंव त कहिथे-दाई ल बला,
काय होगे ददा ल,
देख तो चल आ,
अरे बेटा! फिकिर करे के बात नोहय,
जब हमर बिहाव होत रहिस,
त खाय के बेर चिमनी बुतागे,
बरतिया मन मरत रहिन भूख,
लकर-धकर म पतरी तको खवागे,
तोर ददा अंधियार म,
पानी-पानी चिल्लात रहिस,
हकन-हकन के भात-साग ल,
खात रहिस,
अटकिस त मुॅंह होगे खुल्ला,
मेचका मन खुसरगे,
ओ दिन ले उसनिंदा म,
पानी-पानी बर्राथे,
अउ सावन आथे त मेचका बरोबर,
तोर ददा हर टर्राथे।
07 May 2018
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