बैसाखी छोड़
मानसिक कुंठित व्यक्तित्व,
हमेशा ही हारा है,
अगर योग्यता विकलांग हो,
तो आरक्षण ही सहारा है,
मन पंगु, तन पंगु
जीवन पंगु हो जाता है,
मिलती नहीं पहचान,
दुनिया में कहीं खो जाता है,
फिर क्यों!
संकीर्ण विचारों में,
खुद को बरबाद,
कर रहा है,
जिंदा लाश बन,
पल-पल
मर रहा है,
अपने भाग्य को,
यूं कोसा मत कर,
बैसाखी पर पूरा,
भरोसा मत कर,
अरे छोड़
आरक्षण की बैसाखी,
तू कमजोर नहीं है,
पूर्ण विश्वास से जहां,
रख दे कदम,
हे मानव तेरा लक्ष्य
वहीं है। (मनोज कुमार श्रीवास्तव)