चुराता हूँ सबका स्नेह, पर चोरी न समझना,
डोर बांधा हूँ बस प्रेम का, डोरी न समझना,
जो भी हूँ आज मैं, मेरी मिट्टी का संस्कार है,
मेरी सहजता को देख, कमजोरी न समझना।
04 February 2018
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मनोज श्रीवास्तव जी की रचनाएं
» कमजोरी न समझना
चुराता हूँ सबका स्नेह, पर चोरी न समझना,
डोर बांधा हूँ बस प्रेम का, डोरी न समझना,
जो भी हूँ आज मैं, मेरी मिट्टी का संस्कार है,
मेरी सहजता को देख, कमजोरी न समझना।