बचपन को फिर देख रहा हूं,
विद्यालय का प्यारा आॅंगन,
साथी-संगियों से वह अनबन,
गुरू के भय का अद्भुत कंपन,
इन्हीं विचारों के घेरे में,
मन को अपने सेंक रहा हॅंू
बचपन को फिर देख रहा हूॅं,
निष्छल मन का था सागर,
पर्वत-नदियों में था घर,
उछल-कूद कर जाता था मैं,
गलती पर डर जाता था मैं,
लेकिन आज यहाॅं पर फिर से,
गलती का आलेख रहा हूॅं,
बचपन को फिर देख रहा हॅूं,
चिर लक्ष्य का स्वप्न संजोया,
भावों का मैं हार पिरोया,
मेहनत की फिर कड़ी बनाई,
उस पर मैंने दौड़ लगाई,
वह बचपन का महासमर था,
अब पचपन को देख रहा हूॅं।
विद्यालय का प्यारा आॅंगन,
साथी-संगियों से वह अनबन,
गुरू के भय का अद्भुत कंपन,
इन्हीं विचारों के घेरे में,
मन को अपने सेंक रहा हॅंू
बचपन को फिर देख रहा हूॅं,
निष्छल मन का था सागर,
पर्वत-नदियों में था घर,
उछल-कूद कर जाता था मैं,
गलती पर डर जाता था मैं,
लेकिन आज यहाॅं पर फिर से,
गलती का आलेख रहा हूॅं,
बचपन को फिर देख रहा हॅूं,
चिर लक्ष्य का स्वप्न संजोया,
भावों का मैं हार पिरोया,
मेहनत की फिर कड़ी बनाई,
उस पर मैंने दौड़ लगाई,
वह बचपन का महासमर था,
अब पचपन को देख रहा हूॅं।