आज भी हैं देश में,
साम्प्रदायिकता के स्वान।
जिस मिट्टी का खाते जूठन,
करते उसका अपमान।।
कट्टरपंथी लोग रहे,
भेद-भाव का विष घोल।
स्वर-व्यंजन से अनभिज्ञ हैं,
बोल रहे बड़बोल।।
ऐसे मानव शत्रु का,
मिलकर कर दो त्याग।
फिर कभी न लगा सके,
वह मानवता में आग।।
04 November 2017
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