06 September 2017

सूखे के कारण सोयाबीन व धान चराने किसान खेतों में छोड़ रहे मवेशी

नवागढ़-ब्लाक में किसानों पर छाये संकट के बादल छटने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।
और किसान अब अपनी खड़ी फसल में जानवरो को चरने के छोड़ रहे है जिससे कम से कम जानवरो का पेट तो भर सके।

छत्तीसगढ़ अभी देश का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक बनने की स्थिति में है,प्रदेश में पीला सोना कहे जाने वाले सोयाबीन पर संकट के बादल छाए हुए हैं। बारिश नहीं होने से किसान निराश हो चुके हैं।

नवागढ़ ब्लाक लगातार दूसरा वर्ष सुखा की चपेट में है,सुखा राहत और फसल बीमा की बात कह कर बैंक और बीमा कंपनियो की मिलीभगत से सैकड़ो किसानो को इसका लाभ नही मिल पा रहा है,सुखा राहत और फसल बीमा के लिए किसानो से नगद राशि या फिर खाता से रकम लिया गया  परंतु कुछ समय बाद उन लोगो को रकम वापस दे दिया गया जिससे शासन की योजनाओ से मिलने वाले लाभ से किसान वंचित रह जा रहे है।
फसल बीमा के नाम से संबलपुर,तेंदुआ,अंधियाखोर,
बाघुल,झांकी,सिवनी,घोघरा,
घठोली,गनिया,धनोरा,नांदल,
धोबनीकला,ठेंगाभांठ के किसान बीमा कंपनी और बैंक प्रबधन सहित,मौसम की दोहरी मार झेल रहे है।

किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। 
कृषि कार्य में जोर-शोर से जुटे किसानों को अब भी जोरदार बारिश की प्रतीक्षा है। 
कुछ किसान फसल की ख़राब स्थिति और मौसम की बेरुखी को देखते हुए अपने खेत के फसल को जानवरों के खाने के छोड़ रहे है।
नवागढ़ ब्लाक के ग्राम पंचायत नेवसा के दर्जनों किसानो और गांववालो ने अपनी सोयाबीन और धान की खड़ी फसल को पानी की समस्या से ख़राब और सूखते हुए देखते हुए देखा और सभी लोगो ने एक मत से निर्णय लिया की गांव के जानवरो को खाने के लिए चारा और पीने के लिए पानी की दिनोदिन बड़ रहे समस्या को ध्यान में रखते हुए गांव के करीब 800 एकड़ फसल को जानवरो के चरने के लिए छोड़ दिया और पुरे गांव वाले अपने खून पसीना से मेहनत करने के बाद भी लागत नही वसूल पाने के गम को भुला कर फसल को चरते हुए देखते रहे।
सेवा सहकारी समिति सदस्य भुवन साहू,गांव के उपसरपंच तुलसीराम,पंच धनीराम,भूपेंद्र,सहित रामअवतार साहू,शिव अगस ध्रुव,सनत साहू,राधे साहू,अश्वनी साहू,संतोष,छेदू,चैनराम साहू,चोवाराम,बाराती,बंशी ध्रुव,गणपत,रघुनाथ,गेंदु,
आत्माराम,ने भरे आंखो से बताया की सरकार की कोई भी शासकीय योजना का लाभ हम गांव वालो को नही मिल रहा है,गांव में करीब 5 तालाब है सभी तालाब लगभग सुख गए है,गांव के 8 हैंडपंप से भी अब पानी की जगह हवा निकलना शुरू हो गया है,1 हैंडपंप सोलर से जुड़ा हुआ था परंतु उसको भी बंद हुए करीब एक महीने से भी अधिक हो गया है ।
गांव के लोगो का कहना है की अनुमान के अनुसार गांव का जलस्तर करीब 120 से 150 फिट से भी नीचे चले गया है जिसके कारण हैंडपंप से पानी नही आ रहा है।
सितंबर माह का प्रथम सप्ताह भी बीत रहा है लेकिन कृषि के लायक पर्याप्त बारिश अब तक नहीं हो पाई।

प्रदेश भर की तरह नवागढ़ ब्लाक में भी किसानों ने सोयाबिन की फसल की बुआई कर दी है। लेकिन मौसम की बेरुखी के चलते किसानों की फसल खराब होने की बेचैनी बढ़ गई है। 
अब बारिश की बेरूखी से फसलों की सेहत पर असर पड़ रहा है। इल्ल्यिों का प्रकोप बढ गया है। इससे फसलें कमजोर पड़ कर सूखने लगी  है। धूप ज्यादा पड़ने से तापमान बढ़ रहा है इससे पीला मोजेक बीमारी सहित अन्य रोग फसलों को घेर रहे हैं।गौरतलब है कि बीते साल सोयाबीन के दाम 5,000 से घटकर सीधे 3,000 रु. क्विंटल होने से किसान परेशान हो गये था।  

कृषि जानकार देवादास चतुर्वेदी,शक्तिधर दीवान के अनुसार सोयाबीन में अत्याधिक मात्रा में प्रोटीन होते हैं और खाद्य तेल बनाया जाता है। सोयाबीन प्रदेश में किसानों के बीच करीब डेढ दशक पहले बहुतायत चलन में आया है। 
इसके बढ़ते दाम की वजह से किसानों का रुझान सोयाबीन की ओर बढ़ता गया।
उत्पादन किसानों को नगद फसल के रूप में दिखाई दे रहा था। सोयाबीन को 6,000 रु. तक के दाम मिलने लगे थे। बुआई का आकड़ा हर साल बढ़ता गया। लेकिन अब इसके दाम सीधे 3,000 तक आ गए हैं। जिससे बुआई का खर्च निकलना भी मुश्किल हो गया है। 
ज्यादा बारिश होने पर भी सोयाबीन की फसल नष्ट होती है।
किसान अब बड़े उम्मीद से खुले आसमान की तरफ देख रहा है बारिश के इंतजार में,पर मौसम अभी भी किसानो की परीक्षा लेने और उनकी सहनशक्ति को देखने में कोई कमी नही कर रहा है।सेवा सहकारी समिति नवागढ़ के संचालक जितेंद्र सिंह भुवाल ने कहा की क्षेत्र में सैकड़ो किसानो से फसल बीमा के नाम से बैंक प्रबंधको और बीमा कंपनियो द्वारा धोखाघड़ी भी किया जा रहा है।

जिससे नवागढ़ ब्लाक के किसान बिजली,पानी और मुआवजा के लिए विभागों के चक्कर काट रहे है जहां उनके इन समस्याओ के निराकरण का कोई प्रयास नही किया जा रहा है साथ ही ब्लाक के ज्यादातर गावो में बिजली विभाग द्वारा दिन में करीब 40 से 50 बार अघोषित तौर पर आंखमिचौली करने की वजह  से किसान आक्रोशित है।और समय रहते अगर विभागों ने अपना रवैया नही सुधारा तो ग्रामीणो के आक्रोश को दबाना भारी पड़ सकता है।




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*अमित जैन संवाददाता दैनिक भास्कर*
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