अपनों के बीच मैं बेसहारा निकला,
कोई मेरा ही साहित्य का हत्यारा निकला।
इस मिट्टी की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी,
अफसोस के भीतर का पानी ही खारा निकला।
उसे देखकर उम्मीद तो बंध गयी थी,
मेरी तरह वह भी किस्मत का मारा निकला।
तैरने में तो हमेशा जीत हासिल होती रही,
संसार के सागर में हरदम ही हारा निकला।
गैरों से अपमान की गुंजाइश नहीं थी,
इज्जत नीलाम करने वाला ही हमारा निकला।
02 September 2017
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