जितनी सुन्दर मूर्तियां ढोकरा आर्ट से बनाई जाती है, उससे कई ज्यादा परिश्रम इसे बनाने में करना होता है। पीतल पिघला देने वाली आग की भीषण गर्मी और भट्टी में पक रहे मिट्टी के साचे और जलती लकड़ियों के धुएं के बीच, घंटो काम कर, मधुमक्खी के छत्ते से बने मोम की रस्सियां निकलने में शारीरिक परिश्रम कर तथा मूर्तियों को सजाने के लिए कड़े मोम को बेलकर तैयार होती है, पीतल से बनी मूर्तियां
जिस ढोकरा आर्ट से मूर्तियां बनाने में 1 महीने से भी अधिक का समय लगता है, उसे 8 दिनों में सुबह 7 से 11 शिविर में, 11 से 3 अपने घरो में, फिर शाम 3 से 7 पुनः शिविर में लगातार काम कर नवागढ़ के प्रशिक्षुओं ने एक कीर्तिमान स्थापित किया है।
12 साल के बच्चे से लेकर 35 साल तक के प्रशिक्षार्थीयो की विगत 8 दिनों की बड़े उत्साह और कड़े मेहनत के परिणाम से बनकर तैयार हुई है, ढोकरा आर्ट से बनी मूर्तियां।
जहां अन्य कला सिखने रहे प्रशिक्षुओं को एक से अधिक कला सिखने का समय मिला, वही ढोकरा आर्ट सिख रहे प्रशिक्षुओं को दो पालियों का भी समय कम पड़ गया, इसलिए घरों में भी इन्हें काम करना पड़ा।
ढोकरा आर्ट एक अकेली कला नही है, वरन यह बहुत सी कलाओं का समावेश है। इस कला को सीखने के लिए आपको बहुत सी और कलाओं में, जैसे- मिट्टी से मूर्ति बनाने की कला, धागे से डिजाइनिंग की कला, मोम से मूर्तियां बनाने की कला व अन्य कलाओं का ज्ञान होना जरूरी है। इन सभी कलाओं के समावेश से बनती है ढोकरा आर्ट से मूर्तियां।
आइए देखें ढोकरा आर्ट से मूर्ति बनाने की प्रक्रिया-
1. सबसे पहले पिली मिट्टी, जिसमे इलास्टिसिटी ज्यादा जोति है, में धान का बड़ा व बारीक़ छिलका मिला कर, मूर्ति बनाया जाता है। जैसा आकार मिट्टी से दिया नाता है, वैसी ही फाइनल मूर्ति बनकर तैयार होती है।
1. सबसे पहले पिली मिट्टी, जिसमे इलास्टिसिटी ज्यादा जोति है, में धान का बड़ा व बारीक़ छिलका मिला कर, मूर्ति बनाया जाता है। जैसा आकार मिट्टी से दिया नाता है, वैसी ही फाइनल मूर्ति बनकर तैयार होती है।
2. फिर इसे धुप में सुखाने के बाद नदी किनारे की मिट्टी जिसे गोबर में मिलाकर छाना जाता है, लगाकर सुखाया जाता है।
3. अब इसे सैंड पेपर से घिसकर चिकना किया जाता है।
4. अब मधुमखी के छत्ते के मैंद व सरई की लकड़ी की धुप को आग में पिघला कर मोम बनाया जाता है।
5. बने मोम को आग में पिघलाकर मूर्ति के ऊपर गर्म मोम का लेप लगाया जाता है।
6. अब इस मोम को हाथ से आग में गर्म कर नर्म किया जाता है, फिर इसका धागा निकाला जाता है, धागे निकलने की प्रक्रिया में सबसे अधिक शारिरिक परिश्रम करना पड़ता है, क्योंकि बहुत अधिक मेहनत करने के बाद भी कम मात्रा में धागे निकलते हैं।
7. इन धागों को मूर्तियों पर बारीकी से इस तरह लपेटा जाता है, जिससे कोई भी स्थान रिक्त न छूटे।
8. अब मोम को पुनः हाथो से आग में नर्म कर, पतले धागे निकाले जाते हैं, इन पतले धागों से पूर्व में लपेट गये धागों के ऊपर सजावट के लिए डिजाईन बनाई जाती है। यह चरण भी सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैसी आकृति में मोम लपेटा व डिजाईन किया जाता है, उसी आकृति में पीतल की मूर्ति तैयार होती है।
9. अब मूर्तियों के मोम से हाथ, चेहरे, पैर व अन्य आकृतियां बनाई जाती है, जो पहली बार प्रशिक्षण लेने आए प्रशिक्षुओं को कठिन पड़ती है। फिर भी इस वर्ष प्रशिक्षार्थियों ने बड़ी मेहनत से यह खुद से तैयार की है।
10. अब तीन परत की मिट्टी मोम के ऊपर चढ़ि जाती है- 1. रेतीली गोबर मिली छनी हुई मिट्टी, 2. धान के छिलके मिली काली मिट्टी, 3. लाल मिट्टी
11. इस चरण में दो भट्ठियां बनाई जाती है। पहली भट्टी में साचे को डालकर लकड़ियों के बीच पकाने से मोम बाहर निकल आता है और अंदर का हिस्सा खोखला हो जाता है।
तथा दूसरे भट्ठे में पीतल को पिघलाया जाता है तथा इसे ब्लोअर से लगातार हवा भी दी जाती है। जब तापमान पीतल के गलनांक तक पहुचता है, तब पीतल लिक्विड फॉर्म में आ जाता है।
12. इस गले हुए पीतल को खोखले मिट्टी के साचे में डाला जाता है। फिर थोसि देर सुखाने के बाद ऊपरी हिस्से को फोड़ने पर प्राप्त होती है पीतल की मूर्तियां।
13. अब पीतल की मूर्ति से मिट्टियों को साफ किया जाता है तथा chisel से useless पीतल को छीलकर अलग कर दिया जाता है।