आकाओं की आवाज़
मौनी हो गई है,
इस शहर की सियासत
बौनी हो गई है,
सोच के साथ-साथ,
कर्मों में भी दरख़्त है,
मेरे मसीहा का पेशाना,
पिंडारियों सा सख्त है,
शायद उसे याद नहीं कि
आदमी केवल हाड़-मास है,
कल का चर्चित रहा डाकू,
आज का बदनाम इतिहास है....
मौनी हो गई है,
इस शहर की सियासत
बौनी हो गई है,
सोच के साथ-साथ,
कर्मों में भी दरख़्त है,
मेरे मसीहा का पेशाना,
पिंडारियों सा सख्त है,
शायद उसे याद नहीं कि
आदमी केवल हाड़-मास है,
कल का चर्चित रहा डाकू,
आज का बदनाम इतिहास है....