हमारा देश संस्कृतियों और पंरपराओं का देश है। भारतवासी अपनी परंपरा और संस्कृति को सांस्कृतिक विरासत मानकर उसे अक्षुण्ण बनाए रखने का प्रयास करते हैं, यह भारतवासियां की विशेषता है। हमारे देश की परंपराओं और त्यौहारों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
अनेक महत्वपूर्ण त्यौहारों में होली का अपना अलग ही महत्व है। वार्षिक त्यौहारों में एक वार्षिक त्यौहार होली भी है। जिस प्रकार हम हर त्यौहार की प्रतीक्षा बेसब्री से तथा प्रसन्न मन से करते हैं, उसी प्रकार होली के लिए हमारे मन में अलग ही उत्साह रहता है। यह रंगों का त्यौहार है जिसमें रंगने के लिए हम तन और मन से मानसिक रूप से तैयार रहते हैं।
हर त्यौहार का कुछ न कुछ कारण होता है, वैसे ही होली का भी महत्वपूर्ण कारण है। होली की कथा के अनुसार होलिका नामक बुराई अपने बुरे उद्देष्य में सफल नहीं हो पाती और आग में न जलने का वरदान पाकर भी आग में जल जाती है क्योंकि यह प्रकृति का नियम है। यदि हम किसी का अहित करना चाहें तो भी हम यह नहीं कर सकते क्योंकि यह हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। होली का त्यौहार मनाने का भी हमारा यही भाव है कि बुरा करने वाला का भगवान स्वयं बुरा कर देता है, होलिका के साथ भी यही हुआ जिससे प्रह्लाद का भला चाहने वाले सभी लोग प्रसन्न हो गए तथा सभी ने प्रह्लाद को तिलक लगाकर उसे शुभकामनाएं दीं तथा लोगों ने आपस में भी एक-दूसरे को तिलक लगाया और बधाईयां दीं।
कालांतर में इस घटना ने परंपरा का रूप धारण कर लिया और लोग इस परंपरा को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाने लगे जिसे होली का नाम दिया गया। अब इस त्यौहार के नामकरण के पीछे तर्क देखा जाय तो लगता है कि होलिका नामक बुराई को लोग याद रखें तथा होलिका की तरह कोई भी व्यक्ति अधर्म न करे, इसीलिए इस त्यौहार का नाम होलिका रखा गया होगा जिससे लोगों को होलिका को उसके अधर्म की मिली सजा जुबानी याद रह सके।
अब हम देखते हैं कि होलिका को उसके किये की सजा मिलने के बाद से यह परंपरा शुरू हुई तो आरंभिक दौर में लोगों के द्वारा इस त्यौहार को मनाए जाने का स्वरूप कुछ दूसरा था। लोगों में इस परंपरा के प्रति अपनत्व का भाव रहता था। वे निर्धारित तिथि को त्यौहार मनाने की तैयारी काफी दिन पूर्व से करते थे साथ ही लोगों के मन में उत्साह के साथ-साथ बुरी होलिका के प्रति क्रोध का भाव भी रहता था। वे जब होलिका दहन करते थे तब उनके चेहरे के भाव ऐसे होते थे जैसे सचमुच की होलिका उनके सामने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी हुई हो और स्वयं जल रही हो, इस कल्पना को करते हुए लोग प्रसन्नता का अनुभव करते थे तथा खुशी में एक-दूसरे को रंग लगाते थे। अच्छाई पर बुराई की जीत की खुशी में लोग एक-दूसरे का मुह मीठा करते थे। इस परंपरा में पूरी तरह सादगी का ही स्थान था।
समय के चक्र के साथ लोगों के विचार और रहन-सहन बदले तथा इस त्यौहार के स्वरूप में भी परिवर्तन आ गया। आज होलिका दहन की सामग्री एकत्रित करने के लिए कई लोग अनुचित ढंग से दूसरों का नुकसान कर या चोरी करके लकड़ी की व्यवस्था करते हैं। वर्तमान परिवेश के लोग मर्यादा को भूलते हुए होलिका दहन कर अपशब्दों का प्रयोग करते हैं जो सर्वथा निंदनीय है यहीं से परंपरा में विकार का आरंभ होता है। आज त्यौहार के नाम पर अभद्रता का परिचय दिया जाता है सादगी से रंग लगाने के स्थान पर बेहुदा ढंग से रंग लगाया जाता है। सूखे रंग के प्रयोग के स्थान पर कई लोग गंदा पानी, कीचड़, ग्रीस तथा नहीं छूटने वाले केमिकल युक्त रंगों का बलात् प्रयोग करते हैं जिसके कारण सभ्य लोगों के मन में इस त्यौहार के प्रति गलत छवि बनती जा रही है। लोग इस त्यौहार से दूर रहना पसंद करने लगे हैं, कुछ लोग तो इस दिन दरवाजा बंद करके दिन भर नहीं निकलते हैं। लोग मिठाईयों और शुभकामनाओं के स्थान पर मांस-मदिरा एवं अनर्गल नशे का प्रयोग करने लगे हैं जिसके कारण इस त्यौहार की छवि जन-सामान्य में बुरी होती जा रही है। कुछ लोग तो इस दिन का फायदा उठाकर अपनी दुश्मनी निकालने लगे हैं। अनेक स्थानों पर खून-खराबे होने लगे हैं जिसके कारण लोगों में इस त्यौहार से भय का वातावरण बना रहता है।
आज की होली लोगों के लिए मात्र व्यावहारिकता बन कर न रहे, इसके लिए हम सभी को पूरा प्रयास करना चाहिए। वर्तमान युवा पीढ़ी को भटकने से रोकने का प्रयास किया जाना चाहिए तथा शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम में इन बातों को अनिवार्यतः भावी पीढ़ी को बताया जाना चाहिए। यदि हम गलत होंगे तो हमारी पीढ़ी भी गलत होगी, इस बात का ध्यान हमें रखना ही चाहिए। इसलिए होली को उसी पारंपरिक और प्रेरणास्पद ढंग से मनाएं जिस ढंग से पहले मनाया जाता था और होली बुराई को दूर करने वाला त्यौहार है इसलिए इस त्यौहार में बुरे लोगों, बुरी वस्तुआें, बुरी मानसिकताओं तथा विकारों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह हम सभी भारतवासियों का परम कर्तव्य है।
अनेक महत्वपूर्ण त्यौहारों में होली का अपना अलग ही महत्व है। वार्षिक त्यौहारों में एक वार्षिक त्यौहार होली भी है। जिस प्रकार हम हर त्यौहार की प्रतीक्षा बेसब्री से तथा प्रसन्न मन से करते हैं, उसी प्रकार होली के लिए हमारे मन में अलग ही उत्साह रहता है। यह रंगों का त्यौहार है जिसमें रंगने के लिए हम तन और मन से मानसिक रूप से तैयार रहते हैं।
हर त्यौहार का कुछ न कुछ कारण होता है, वैसे ही होली का भी महत्वपूर्ण कारण है। होली की कथा के अनुसार होलिका नामक बुराई अपने बुरे उद्देष्य में सफल नहीं हो पाती और आग में न जलने का वरदान पाकर भी आग में जल जाती है क्योंकि यह प्रकृति का नियम है। यदि हम किसी का अहित करना चाहें तो भी हम यह नहीं कर सकते क्योंकि यह हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। होली का त्यौहार मनाने का भी हमारा यही भाव है कि बुरा करने वाला का भगवान स्वयं बुरा कर देता है, होलिका के साथ भी यही हुआ जिससे प्रह्लाद का भला चाहने वाले सभी लोग प्रसन्न हो गए तथा सभी ने प्रह्लाद को तिलक लगाकर उसे शुभकामनाएं दीं तथा लोगों ने आपस में भी एक-दूसरे को तिलक लगाया और बधाईयां दीं।
कालांतर में इस घटना ने परंपरा का रूप धारण कर लिया और लोग इस परंपरा को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाने लगे जिसे होली का नाम दिया गया। अब इस त्यौहार के नामकरण के पीछे तर्क देखा जाय तो लगता है कि होलिका नामक बुराई को लोग याद रखें तथा होलिका की तरह कोई भी व्यक्ति अधर्म न करे, इसीलिए इस त्यौहार का नाम होलिका रखा गया होगा जिससे लोगों को होलिका को उसके अधर्म की मिली सजा जुबानी याद रह सके।
अब हम देखते हैं कि होलिका को उसके किये की सजा मिलने के बाद से यह परंपरा शुरू हुई तो आरंभिक दौर में लोगों के द्वारा इस त्यौहार को मनाए जाने का स्वरूप कुछ दूसरा था। लोगों में इस परंपरा के प्रति अपनत्व का भाव रहता था। वे निर्धारित तिथि को त्यौहार मनाने की तैयारी काफी दिन पूर्व से करते थे साथ ही लोगों के मन में उत्साह के साथ-साथ बुरी होलिका के प्रति क्रोध का भाव भी रहता था। वे जब होलिका दहन करते थे तब उनके चेहरे के भाव ऐसे होते थे जैसे सचमुच की होलिका उनके सामने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी हुई हो और स्वयं जल रही हो, इस कल्पना को करते हुए लोग प्रसन्नता का अनुभव करते थे तथा खुशी में एक-दूसरे को रंग लगाते थे। अच्छाई पर बुराई की जीत की खुशी में लोग एक-दूसरे का मुह मीठा करते थे। इस परंपरा में पूरी तरह सादगी का ही स्थान था।
समय के चक्र के साथ लोगों के विचार और रहन-सहन बदले तथा इस त्यौहार के स्वरूप में भी परिवर्तन आ गया। आज होलिका दहन की सामग्री एकत्रित करने के लिए कई लोग अनुचित ढंग से दूसरों का नुकसान कर या चोरी करके लकड़ी की व्यवस्था करते हैं। वर्तमान परिवेश के लोग मर्यादा को भूलते हुए होलिका दहन कर अपशब्दों का प्रयोग करते हैं जो सर्वथा निंदनीय है यहीं से परंपरा में विकार का आरंभ होता है। आज त्यौहार के नाम पर अभद्रता का परिचय दिया जाता है सादगी से रंग लगाने के स्थान पर बेहुदा ढंग से रंग लगाया जाता है। सूखे रंग के प्रयोग के स्थान पर कई लोग गंदा पानी, कीचड़, ग्रीस तथा नहीं छूटने वाले केमिकल युक्त रंगों का बलात् प्रयोग करते हैं जिसके कारण सभ्य लोगों के मन में इस त्यौहार के प्रति गलत छवि बनती जा रही है। लोग इस त्यौहार से दूर रहना पसंद करने लगे हैं, कुछ लोग तो इस दिन दरवाजा बंद करके दिन भर नहीं निकलते हैं। लोग मिठाईयों और शुभकामनाओं के स्थान पर मांस-मदिरा एवं अनर्गल नशे का प्रयोग करने लगे हैं जिसके कारण इस त्यौहार की छवि जन-सामान्य में बुरी होती जा रही है। कुछ लोग तो इस दिन का फायदा उठाकर अपनी दुश्मनी निकालने लगे हैं। अनेक स्थानों पर खून-खराबे होने लगे हैं जिसके कारण लोगों में इस त्यौहार से भय का वातावरण बना रहता है।
आज की होली लोगों के लिए मात्र व्यावहारिकता बन कर न रहे, इसके लिए हम सभी को पूरा प्रयास करना चाहिए। वर्तमान युवा पीढ़ी को भटकने से रोकने का प्रयास किया जाना चाहिए तथा शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम में इन बातों को अनिवार्यतः भावी पीढ़ी को बताया जाना चाहिए। यदि हम गलत होंगे तो हमारी पीढ़ी भी गलत होगी, इस बात का ध्यान हमें रखना ही चाहिए। इसलिए होली को उसी पारंपरिक और प्रेरणास्पद ढंग से मनाएं जिस ढंग से पहले मनाया जाता था और होली बुराई को दूर करने वाला त्यौहार है इसलिए इस त्यौहार में बुरे लोगों, बुरी वस्तुआें, बुरी मानसिकताओं तथा विकारों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह हम सभी भारतवासियों का परम कर्तव्य है।