आज गुलामी नहीं है फिर भी,
जाने ना कोई मोल,
हर प्राणी उच्छृंखल हो रहे,
बोल रहे बड़बोल,
अंग्रेजों का हंटर था जब,
अनुशासन था मस्त,
अब स्वतंत्रता का रूप हो गया,
भारतवर्ष में ध्वस्त।
जाने ना कोई मोल,
हर प्राणी उच्छृंखल हो रहे,
बोल रहे बड़बोल,
अंग्रेजों का हंटर था जब,
अनुशासन था मस्त,
अब स्वतंत्रता का रूप हो गया,
भारतवर्ष में ध्वस्त।