13 February 2017

मजदूर

क्या तुमने एक मजदूर के
माथे का पसीना,
नजदीक से देखा है ?
क्या तुम्हें, उसके द्वारा
उठाए जाने वाले,
लोहे का भार ज्ञात है ?
क्या तुम उसके हाथों में
पड़े छाले की गहराई से भिज्ञ हो ?
क्या तुम उस आग की
भट्ठी को महसूस कर सकते हो,
जिसके सामने वह
घंटों तपता है ?
क्या तुम्हें यह भी पता है कि
उसकी परिस्थितियों ने उसे,
स्वच्छ भोजन की परिभाषा से
वंचित रखा है?
तुम्हें यह भी मालूम है कि
वह दिन भर प्रदूषण का लिबास,
शालीनता से ओढ़ने को मजबूर है !
क्या तुम्हें अनुमान है कि
तपती घूप में गर्म लोहा
उठाते हुए मजदूर को,
मालिक की फटकार,
कर्णप्रिय लगता है।
क्या तुम्हें यह पता है की
सैकड़ों टन का भार उठाते हुए भी,
उसका ध्यान,
ब्याज पर लिये कर्ज में
रहता है।
क्या तुम्हें यह भी मालूम है कि
किसी अनहोनी का शिकार
होने पर,
उसकी पत्नी और बच्चे का
भरण-पोषण कौन करेगा?
अगर तुम्हें यह सब नहीं पता,
तो तुम मजदूरों के हक की बात,
कैसे रख पाओगे ?
क्या कहा! मुझे कैसे पता !
मुझे पता है !
क्योंकि मैं खुद एक
मजदूर हूँ।
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