‘‘ ओ साहब!
क्या तुम आधुनिक लोकतंत्र को
लूटने वाले नेता हो,
या रहीसी के दम पर बिकने वाले
अभिनेता हो,
क्या तुम वास्तविकता से अंजान
बड़े पद पर बैठे अधिकारी हो,
या मानवता की दलाली करने वाले
शिकारी हो,
क्या तुम भ्रष्टाचार में सिंके हुए
गुर्दे हो,
या संसद में बकवास करने वाले
मुर्दे हो,
तुम जो भी हो,
मेरा प्रश्न है कि
अपनी बेटी की आबरू लूटने वाले के प्रति
तुम क्या सोचते?
तुम मौन हो
पर मुझे मालूम है
तुम उस वहशी के
अनगिनत टुकड़े करते
फिर आज बेटियों की
अस्मत के हत्यारे
देश में,
स्वतंत्र क्यों घूम रहे हैं
क्या तुम्हारी आत्मा तुम्हें
इसलिए नहीं धिक्कारती
कि उस आबरू लुटी बेटी को
तुमने पैदा नहीं किया है।
क्या तुम आधुनिक लोकतंत्र को
लूटने वाले नेता हो,
या रहीसी के दम पर बिकने वाले
अभिनेता हो,
क्या तुम वास्तविकता से अंजान
बड़े पद पर बैठे अधिकारी हो,
या मानवता की दलाली करने वाले
शिकारी हो,
क्या तुम भ्रष्टाचार में सिंके हुए
गुर्दे हो,
या संसद में बकवास करने वाले
मुर्दे हो,
तुम जो भी हो,
मेरा प्रश्न है कि
अपनी बेटी की आबरू लूटने वाले के प्रति
तुम क्या सोचते?
तुम मौन हो
पर मुझे मालूम है
तुम उस वहशी के
अनगिनत टुकड़े करते
फिर आज बेटियों की
अस्मत के हत्यारे
देश में,
स्वतंत्र क्यों घूम रहे हैं
क्या तुम्हारी आत्मा तुम्हें
इसलिए नहीं धिक्कारती
कि उस आबरू लुटी बेटी को
तुमने पैदा नहीं किया है।