क्या तुम्हारी आत्मा में आवाज है?
अपने दुष्कृत्यों पर तुम्हें लाज है?
क्या तुम्हें छोटों से स्नेह है?
क्या परमार्थ तुम्हारा ध्येय है?
क्या तुम्हारी वाणी नर्म है?
क्या मानवता तुम्हारा धर्म है?
क्या गरीबों से दुआएं लेते हो?
क्या असहायों को स्नेह देते हो?
अधिकारों के साथ कर्तव्य निभाते हो?
बड़े तो हो पर बड़प्पन दिखाते हो?
अन्याय देखकर तुम्हारा मन तुम्हें धिक्कारता है?
तुम्हारे अपराध को तुम्हारा हृदय स्वीकारता है?
अपने स्वार्थ की होली क्या तुमने कभी जलायी है?
क्या तुम्हारे विचारों में देश की भलाई है?
अगर इन बातों को सहज ही,
तुझमें स्वीकारने की शक्ति है,
तो मैं भी गर्व से कहता हूं,
ये तुम्हारी सच्ची देशभक्ति है।