जब-जब नैतिकता की हत्या कर,
अनैतिकता के मन में होता मोद,
तब-तब होता मेरे मन में,
अपराध भाव का बोध
शीर्ष करता मनमानी,
मानवता को कालापानी,
साम्प्रदायिकता के पुतले बैठे,
राजनीति की गोद,
तब-तब होता मेरे मन में,
अपराध भाव का बोध,
भेदभाव के दीमक फैले,
सफेदपोश हैं आज मैले,
सत्य-धरम का गला दबाये,
अधर्मी करे प्रमोद,
तब-तब होता मेरे मन में,
अपराध भाव का बोध।।
अनैतिकता के मन में होता मोद,
तब-तब होता मेरे मन में,
अपराध भाव का बोध
शीर्ष करता मनमानी,
मानवता को कालापानी,
साम्प्रदायिकता के पुतले बैठे,
राजनीति की गोद,
तब-तब होता मेरे मन में,
अपराध भाव का बोध,
भेदभाव के दीमक फैले,
सफेदपोश हैं आज मैले,
सत्य-धरम का गला दबाये,
अधर्मी करे प्रमोद,
तब-तब होता मेरे मन में,
अपराध भाव का बोध।।