ममता क्लब की स्थापना सन 1944 में हुई थी। ममता स्मृति क्लब का इतिहास मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी है।
डॉ. मुखर्जी- सन 1941 में बंगाल प्रांत के निवासी डॉक्टर अजीत कुमार मुखर्जी की नियुक्ति कुष्ट रोग चिकित्सालय नवागढ़ में हुए थी। वह एक सफल चिकित्सक के साथ ही एक अच्छे खिलाडी भी थे, खेलकूद में गहरी रुचि रखते थे, अपनी निस्वार्थ सेवा भाव एवं मधुर व्यवहार से अल्प समय में ही क्षेत्र में लोकप्रिय हो गए थे, उनकी लोकप्रियता का एक छोटा सा उदाहरण है कि उनकी विदाई की समय में ग्रामवासियों के द्वारा उन्हें 35 विदाई भोज दी गई थी, (उस समय नवागढ़ में परिवारों की संख्या भी बहुत कम थी) जो कि नवागढ़ के इतिहास में अविस्मरणीय रहेगी।
ममता क्लब का गठन- इस घटना के पश्चात डॉक्टर साहब का मानसिक संतुलन ठीक न रहा और अपनी शेष शासकीय सेवा को सैनिक सेवा में अर्पित कर दिए। इसी बीच ग्राम की प्रतिष्ठित जनो द्वारा ममता के महत्व को प्रत्येक ग्रामवासियों के हृदय में बसाने के लिए ममता क्लब का रूप दिया गया, जिसे अभी तक उसी स्नेह से 'ममता क्लब' ममता की स्मृति में चलाया जा रहा है।
भावी पीढ़ी से अपेक्षा- ममता क्लब उसी मातम से उपजी ग्राम वासियों की आंसू में डूबी हुई, एक छोटी सी श्रद्धा सुमन है। आज हमारे बीच ममता न रही, डॉक्टर मुखर्जी न रहे, लेकिन ममता ,ममता क्लब के रूप में आज भी हमारे मध्य खिली हुई है। उसकी दुख दर्द की महक आज भी हमारे दिलों में विद्यमान हैं। जिस स्नेह से इस ममता क्लब को पूर्व एवं वर्तमान में जैसे कि चलाया जा रहा है तथा भावी पीढ़ी से आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि इस परंपरा को उदार हृदय से चलाएगी।
डॉ. मुखर्जी- सन 1941 में बंगाल प्रांत के निवासी डॉक्टर अजीत कुमार मुखर्जी की नियुक्ति कुष्ट रोग चिकित्सालय नवागढ़ में हुए थी। वह एक सफल चिकित्सक के साथ ही एक अच्छे खिलाडी भी थे, खेलकूद में गहरी रुचि रखते थे, अपनी निस्वार्थ सेवा भाव एवं मधुर व्यवहार से अल्प समय में ही क्षेत्र में लोकप्रिय हो गए थे, उनकी लोकप्रियता का एक छोटा सा उदाहरण है कि उनकी विदाई की समय में ग्रामवासियों के द्वारा उन्हें 35 विदाई भोज दी गई थी, (उस समय नवागढ़ में परिवारों की संख्या भी बहुत कम थी) जो कि नवागढ़ के इतिहास में अविस्मरणीय रहेगी।
ममता- डॉ ए. के. मुखर्जी की इकलौती लड़की थी 'ममता' जिसकी उम्र 7 वर्ष थी। ममता जैसा नाम वैसा गुण। वह लोगों के मध्य तितली की तरह उड़ा फिरा करती थी, उसकी बंगाली मिक्स हिंदी बोलने में अजीब सी मिठास हुआ करती थी, अपनी बाल सुलभ व्यवहार से उसने नन्ही सी बच्ची ने सभी का मन मोह लिया था। उसकी निश्छल व्यव्हार से रोगी क्षण भर के लिए अपनी बीमारी से मुक्ति पा जाते थे।
ममता की अस्वस्थता- 3 दिसंबर 1943 को ममता अनायास ही अस्वस्थ हो गई, डॉक्टर ए. के. मुखर्जी स्वतः पुत्री की प्राण रक्षार्थ हर उपचार का प्रयोग कर थक गए, तो गांव के आयुर्वेद के सभी चिकित्सक अपनी दवा तथा प्रेमी जन ईश्वर से दुआ करते थक गए, किंतु यह जीवन और मौत का संघर्ष तीन दिन व तीन रात तक निरंतर चलता रहा और हाय मौन रूपी आंधी ने इस नन्ही सी चिराग को असमय ही बुझा दिया।
ममता क्लब का गठन- इस घटना के पश्चात डॉक्टर साहब का मानसिक संतुलन ठीक न रहा और अपनी शेष शासकीय सेवा को सैनिक सेवा में अर्पित कर दिए। इसी बीच ग्राम की प्रतिष्ठित जनो द्वारा ममता के महत्व को प्रत्येक ग्रामवासियों के हृदय में बसाने के लिए ममता क्लब का रूप दिया गया, जिसे अभी तक उसी स्नेह से 'ममता क्लब' ममता की स्मृति में चलाया जा रहा है।
भावी पीढ़ी से अपेक्षा- ममता क्लब उसी मातम से उपजी ग्राम वासियों की आंसू में डूबी हुई, एक छोटी सी श्रद्धा सुमन है। आज हमारे बीच ममता न रही, डॉक्टर मुखर्जी न रहे, लेकिन ममता ,ममता क्लब के रूप में आज भी हमारे मध्य खिली हुई है। उसकी दुख दर्द की महक आज भी हमारे दिलों में विद्यमान हैं। जिस स्नेह से इस ममता क्लब को पूर्व एवं वर्तमान में जैसे कि चलाया जा रहा है तथा भावी पीढ़ी से आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि इस परंपरा को उदार हृदय से चलाएगी।