आ बेटा चुरगे खाबे,
खाले, तहाँ ले डिलवा डहर मेछराबे,
गाँव म घूम-घूम इतराबे,
अउ काटपत्ती-चौरंग म,
कमाके घलो तो लाबे,
आ बेटा चुरगे खाबे।
ददा हर कोल्हू कस बइला,
कमावत हे,
सुक्खा रोटी ल,
रसमलई बरोबर खावत हे,
तेखर पीठ म,
लदना कस लदाबे,
आ बेटा चुरगे खाबे।
दाई हर बनी म जात हे,
तोला जनमाहे तेखर,
लागा ल छुटात हे,
सुआरी के कमई घलो ल,
मुसुर-मुसुर हलाबे,
आ बेटा चुरगे खाबे।
घर वाले मन ल,
लहू के आँसू रोवाबे,
ददा के कमाए मरजाद ल,
माटी म घलो तो मिलाबे,
दाई-ददा तो हक खागे,
उंखर जिये के संउख बुतागे,
ठोमहा भर पानी म तो उन बुड़गे,
अउ काय गंगा ले के जाबे,
आ बेटा चुरगे खाबे।
20 April 2019
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