आज सुबह जब मैं बर्तन मांजने बैठा,
तब सभी जूठे बर्तन मेरे करीब थे,
जैसे कोई इष्ट मित्र।
उनकी अनचाही ध्वनियों से,
प्रतीत होता था जैसे,
वे प्रतियोगी हों,
धुलाई अभियान के,
और प्रथम धुलाई के
आकांक्षी भी।
धुलकर तैयार बर्तन,
मेरी ओर एकटक,
देख रहे थे,
जैसे मुझसे कह
रहे हों कि हम,
निर्मल होकर तैयार हैं,
आपकी सेवा मेें,
मन में विचार आया,
कि काश!
मनुष्य भी होते
इन बर्तनों की तरह,
जो अपने मन के
मैलों को धोने,
आतुर रहते हर वक्त,
और धुलकर कहते,
कि हाॅं मैं तैयार हूॅं,
मानवता की सेवा में।
तब सभी जूठे बर्तन मेरे करीब थे,
जैसे कोई इष्ट मित्र।
उनकी अनचाही ध्वनियों से,
प्रतीत होता था जैसे,
वे प्रतियोगी हों,
धुलाई अभियान के,
और प्रथम धुलाई के
आकांक्षी भी।
धुलकर तैयार बर्तन,
मेरी ओर एकटक,
देख रहे थे,
जैसे मुझसे कह
रहे हों कि हम,
निर्मल होकर तैयार हैं,
आपकी सेवा मेें,
मन में विचार आया,
कि काश!
मनुष्य भी होते
इन बर्तनों की तरह,
जो अपने मन के
मैलों को धोने,
आतुर रहते हर वक्त,
और धुलकर कहते,
कि हाॅं मैं तैयार हूॅं,
मानवता की सेवा में।