आज एकलव्य और
आरुणि शायद ही कहीं है,
पर विश्वामित्र और
सांदीपनि भी तो नहीं है,
शिक्षक राष्ट्र की पूंजी है,
शिक्षक सफलता की कुंजी है,
कोई काल रिक्त
नहीं रहा शिक्षकों से,
यह आवाज
हर युग में गूंजी है,
इसलिए अपना समय,
राष्ट्र को चढ़ाना होगा,
छात्रों के साथ साथ
समाज और परिवार
को भी पढ़ाना होगा।
05 September 2017
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मनोज श्रीवास्तव जी की रचनाएं
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