जमीर को बेच कर भी
शान से झूम रहे हैं,
तलवों को चाटने वाले
हर जगह घूम रहे हैं,
मक्कारी भरी मुस्कान,
चेहरे पर खिल रही है,
शायद उसे भौंकने की
बड़ी पेशगी मिल रही है,
मुझे याद आता है,
मुहावरा एक पाठ का,
धोबी का कुत्ता,
घर का न घाट का..
शान से झूम रहे हैं,
तलवों को चाटने वाले
हर जगह घूम रहे हैं,
मक्कारी भरी मुस्कान,
चेहरे पर खिल रही है,
शायद उसे भौंकने की
बड़ी पेशगी मिल रही है,
मुझे याद आता है,
मुहावरा एक पाठ का,
धोबी का कुत्ता,
घर का न घाट का..