देश की सलामी बाकी है
अभी तो शमा यूं ही जली है,
नूर फैलाना बाकी है,
मयखाने में असर अभी है,
होश में आना बाकी है।
जमीं के भीतर जड़ें गयी हैं,
पकड़ बनाना बाकी है,
दुश्मन अभी डरा नहीं है,
अकड़ बनाना बाकी है,
रात हुई तो गम काहे का,
सूरज उगाना बाकी है,
बुजुर्गियत को अभी न छोड़ो,
नवजवाँ का आना बाकी है,
बातें बहुत हुईं आजादी की,
मन की गुलामी बाकी है,
व्यक्तिवाद की पूजा हो गई,
देश की सलामी बाकी है।।