नवागढ़ के इतिहास जानने की कड़ी में पत्रिका न्यूज़ पेपर के संवाददाता श्री राकेश तिवारी जी व से. नि. पटवारी श्री रामनाथ ध्रुव जी के मार्गदर्शन व सहयोग से छ. ग. के जाने-माने इतिहासकार डॉ. बसुबन्धु दिवान जी से हमें यह ज्ञात हुआ कि छत्तीसगढ़ के इतिहास में आदिवासियों का प्रथम विद्रोह 'सोनाखान के विद्रोह' के रूप में जाना जाता है, जो उपलब्ध तथ्यों के अनुकूल प्रतीत नहीं होता। वस्तुतः छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का प्रथम विद्रोह नवागढ़ में हुआ था और महारसिया नामक आदिवासी नेता ने इसका नेतृत्व किया था। महारसिया छत्तीसगढ़ में सर्वप्रथम शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने वाला आदिवासी नेता था, जो जमीदार परिवार का था।
सन 1818 में छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण में आया। सन 1820 के नवम्बर और दिसंबर माह में ब्रिटिश रेसिडेंट मि. जेन्किन्सन ने जब छत्तीसगढ़ की यात्रा की तब रायपुर पहुंचने पर उन्हें महारसिया और सावंत भारती नामक दो व्यक्ति को जेल से रिहाई बावत दो आवेदन पत्र प्राप्त हुए। महारसिया नाम व्यक्ति नवागढ़ जमीदार के शासक परिवार का वंशज था, वह शासक के पद पर कभी नही था। किंतु मराठा शासन से उसे 300₹ मासिक भत्ता प्राप्त होता था।
बाद में मराठा शासन की खिलाफ विद्रोह करने के अभियोग में उन्हें भत्ता सुविधा से वंचित कर दिया गया और मराठों ने नवागढ़ के जमीदारों पर कड़ाई बरतते हुए राजस्व को बढ़ाकर 3000/- रुपए प्रतिवर्ष कर दिया। (शासन से मिलने वाला भत्ता उसके महत्त्व को प्रदर्शित करता है)
अप्पा साहब के पदच्युत होने के बाद महारसिया ने अपने पैतृक प्रतिष्ठा को प्राप्त करने का पुनः प्रयास किया, किंतु वह असफल रहा, अतः वह प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो गया। अपने प्रभाव और आक्रामक नीति के कारण वह नवागढ़ क्षेत्र के सरकारी राजस्व को हानि पहुंचाता रहा। वह नवागढ़ क्षेत्र में शासन विरोधी व्यक्ति के रूप में विख्यात हो गया।
जब छत्तीसगढ़ पुनः अंग्रेजो के अधिपत्य में आया, तब मि. एगन्यू ने महारसिया के समक्ष उसे क्षमादान करने तथा उसके पूर्व पेंशन को जारी रखने का प्रस्ताव रखा, परंतु उसने उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देशभक्ति का परिचय दिया।
जब किसी तरह बात नही बनी, तब अंग्रेज़ो ने उसे जेल भेज दिया। सन 1819 में वह मिस्टर एगन्यू के सुपुर्द कर दिया गया व गिरफ्तार महारसिया से अंग्रेजो की ओर से यह जमानत मांगी गई कि वह पहले की तरह शासन के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करेगा। चूंकि महारसिया संघर्ष करते करते टूट चुका था, इसलिए उन्होंने बात मान ली।
इस आश्वासन के बाद महारसिया को अंग्रेजो ने छोड़ दिया और उसकी जीविका हेतु ₹500 प्रतिमाह भत्ते है प्रावधान किया ।
इसका उल्लेख पोलिटिकल डिस्पैच नंबर 41 में मिलता है। महारासिया के ही विरोध को आगे चलकर सोनाखान जमींदार रामराय ने आगे बढ़ाया किन्तु मैक्सन नामक अंग्रेज ने उसे पराजित कर नियंत्रित कर लिया।
यह उल्लेख निम्न स्थानों पर भी मिलता है-
1.शोध प्रपत्र- ग्रामीण विकास और अशासकीय संगठन एक राजनीतिक विश्लेषण
PRSU Thesis No. T 22717
PRSU Thesis No. T 22717
2.शोध प्रपत्र- दुर्ग जिले के विकास में पंचायती राज व्यवस्था का योगदान
PRSU Thesis No. T 21857
PRSU Thesis No. T 21857
3. जिला प्रशासन दुर्ग द्वारा 2006 में प्रकाशित पत्रिका- शतायु दुर्ग
श्री बसुबन्धु दीवान जी इतिहास में Phd हैं, 11th और 12th की इतिहास की युगबोध प्रकाशन की किताब भी इन्ही की लिखी हुई है । इन्होंने 1990 में ही महारसिया की ब्रिटिश डाक्यूमेंट्स से खोज कर ली थी, जो 1990 में दैनिक नवजागरण अख़बार में भी प्रकाशित हुई थी। दीवान जी क्षेत्रिय इतिहास का अन्वेषण कर लोगो को अवगत कराते रहते हैं। मक्खनपुर के पुरातात्विक महत्व को भी दीवान जी 1995 से उठाते आ रहे हैं, जो समय-समय पर अखबारों के माध्यम से लोगों व शासन के मध्य प्रसारित होती रहती है।
श्री बसुबन्धु दीवान जी इतिहास में Phd हैं, 11th और 12th की इतिहास की युगबोध प्रकाशन की किताब भी इन्ही की लिखी हुई है । इन्होंने 1990 में ही महारसिया की ब्रिटिश डाक्यूमेंट्स से खोज कर ली थी, जो 1990 में दैनिक नवजागरण अख़बार में भी प्रकाशित हुई थी। दीवान जी क्षेत्रिय इतिहास का अन्वेषण कर लोगो को अवगत कराते रहते हैं। मक्खनपुर के पुरातात्विक महत्व को भी दीवान जी 1995 से उठाते आ रहे हैं, जो समय-समय पर अखबारों के माध्यम से लोगों व शासन के मध्य प्रसारित होती रहती है।