10 March 2017

नवागढ़ का इतिहास

नवजिला बेमेतरा से उत्तर की ओर 25 कि.मी. की दूरी तथा वहीं मुंगेली जिला से 22 कि. मी. की दूरी पर नवागढ़ बीच में स्थित है। नवागढ़ आज नगर पंचायत के रूप में तहसील एवं ब्लॉक का दर्जा प्राप्त कर चुका है।

नवागढ़ जैसे जैसे आधुनिक गति से आगे बढ़ रहा है, वैसे वैसे यह अपनी ऐतिहासिक पहचान को खोता जा रहा है, नवागढ़ का इतिहास 580 ई. शताब्दी के होने के बाद भी आज यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे नवागढ़ को इतिहास का गढ़ कहा जा सके।

यह बुद्धजीवियों की अयोग्यता कहें या प्रशासन की उदासीनता, कारण कोई भी हो, सच तो यह है कि अपने अंदर प्राचीन व इतिहास का भरमार रखने के बावजूद नवागढ़ आज इतिहास से कोसो दूर हो गया है।

नवागढ़ का इतिहास- लगभग 15वीं शताब्दी में नवागढ़ (वर्तमान नाम) गोड़ राजाओं का गढ़ (राज्य) था।  प्राचीन इतिहास के अनुसार इस नवागढ़ ग्राम का नाम नरवरगढ़ था, क्योंकि यहां के शासक का नाम नरवरसाय था ।  आज उस नरवरसाय राजा का प्रतीक प्राचीन मंदिर मां महामार्इ देवी का है, पुराने अवशेष खंडहर, प्राचीन किले का भग्नावशेष आज भी विद्यमान है ।  इस स्थान को आज भी बोलचाल की भाषा में किला कहते है ।  सही अर्थ यह स्थान राजा नरवरसाय का किला था । 

नवागढ़ के बुजुर्गो तथा जनश्रुति के अनुसार रतनपुर नरेश के दो पुत्र हुए प्रथम वीरसिंह देव व द्वितीय देवसिंह देव । रतनपुर राज्य को दो भागों में (18-18 भागो ) में विभक्त कर बड़े पुत्र वीरसिंह देव को रतनपुर राज्य का तथा छोटे पुत्र देवसिंह देव को रायपुर का राजा नियुक्त किया गया ।

रतनपुर के 18  गढ़
रायपुर के 18  गढ़ 
रतनपुर
रायपुर
कोसगई
पाटन
सोढ़ी
सिगमा
सेमरिया
सिरपुर
खरौद
मोहदी
कोटगढ़
अमीर
नवागढ़
दुर्ग
मारो
सारधा
ओखर
सिरसा
पडरभट्ठा
लवन
विजयपुर
खल्लारी
मदनपुर
सिंगारपुर
उपरोड़ा
फिंगेश्वर
करकट्ट,
सुवरमाल
पेण्ड्रा
अकलवाड़ा
केंदा
सिंगारगढ़
मातीन
टेंगनागड़
लाफा
राजिम

रतनपुर नरेश बड़े पुत्र वीरसिंह देव के पुत्र महाराजा नरवरसाय ने 384 गाँव लेकर, एक नगर बनाया, जिसका नाम नरवरगढ़ रखा, जिसे आज नवागढ़ के नाम से जानते है ।

राजा नरवरसाय की दो रानियां थी, बड़ी रानी की नाम माना बार्इ एवं छोटी रानी की नाम भग्ना बार्इ था, जिनके नाम पर आज भी हमारे ग्राम नवागढ़ के मां महामार्इ मंदिर के सामने ''मानाबन'' एवं ''भग्नाबन'' के नाम से विख्यात तालाब है । 

किले का निर्माण- नवागढ़ के किले का निर्माण सन 580 ई. में शुरू किया गया था। किले का निर्माण सुरक्षा की दृष्टि से किया गया था, जहां पर किले का निर्माण किया गया वह एक टीला था, जिसके चारो तरफ गहरी  खाई थी, जिसमें हमेशा पानी एवं दलदल होता था, किला के अंदर ही एक कोने में घोड़े तथा हाथियों को दफनाने के लिए व्यवस्था की गयी थी,जो आज अंतिम सांस ले रही है । 
राजा के किले का नक्शा 

किला बनने के बाद महामाई, भैरव बाबा, ठाकुर देव, गणेश जी, हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा कराये। सन 686 में भादो शुक्ल चतुर्थी को श्री गणेश जी की प्रतिष्ठा हुई।

तालाबो का निर्माण- रानी के नाम पर जो मानाबंद तालाब खुदवाया गया था, उसका निर्माण और महामाई की प्रतिष्ठा तांत्रिक विधि से की गयी थी। गांव की सुरक्षा की दृष्टि से मानाबंद बहुत महत्व का था, तांत्रिक विधि से इसका निर्माण इस तरह कराया गया था, कि लुटेरे या दुश्मन नवागढ़ आते तो ग्रामवासी अपने बचाव के लिए मानाबंद में अपने कीमती सामान लेकर घुस जाते थे, तो जो पानी ग्रामवासियो के लिए कमर तक होता था, उसी पानी में दुश्मन घुसते तो डूब जाया करते थे, ऐसा सयाने लोग बताया करते थे।

नवागढ़ में 126 तालाब 1 बावली एवं कुआँ ग्राम निस्तार के लिए पर्याप्त थे,आज की स्तिथि में मात्र 20 तालाब ही जीवित है बाकी को खेती में उपयोग कर रहे है,यहाँ तालाबो को बंद के नाम रखते थे, जैसे - मानाबंद, भगनाबंद,जुड़ावन बंद,दाऊबंद,चांदाबंद आदि।

जीवित तालाबो में कमल का फूल था, जो चैत्र एवं क्वार के नवरात्रि पर्व पर यहाँ के फूल देवता में चढ़ाने दुरस्थ शहरो में जाता था, जैसे रायपुर दुर्ग बिलासपुर अनेको जगह जाता था, पत्ता से ग्राम निस्तार होता था, जैसे शादी तथा अन्य कार्यो में आसपास के लोग पत्ता निशुल्क ले जाते थे।

राजा बगीचा एवं गुरु बगीचा- यहाँ राजवाड़े के समय राजा बगीचा व गुरु बगीचा था, राजा के समय में राजा बगीचा पूर्व दिशा में व गुरु बगीचा दक्षिण दिशा में था। बगीचे में विविध प्रकार के पेड़, फूल लगे थे, आज दोनों बगीचे उजाड़ होकर कृषि के काम में आ रहे है।

राजवाड़े का  अन्त- नवागढ़ के अधीनस्थ 384 ग्राम था, ये 9 किले यहाँ के अधीनस्थ थे। 11वीं-12 वीं सदी के बीच में, खुसरो गोत्र के नरपति शाह नाम के राजा थे, अंतिम राजा वीर सिंह का पुत्र नरवर शाह था, जिसे मराठो ने कैद कर 17वीं सदी में उरई के जेल में डाल दिया था, जिन्हें 10 साल बाद मृत पाया गया।

स्रोत-
{1}. रामनाथ  ध्रुव जी 
{2}. सुरेन्द्र चौबे जी 

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