27 March 2017

माँ महामाया देवी एवं समीप के मंदिरो का इतिहास


माँ महामाया देवी 


राजा नरवरसाय शक्ति के उपासक थे, उन्होंने अपने किले के भीतर मां महामार्इ की मूर्ति स्थापित कर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कराया था, जो आज उनके धार्मिक आस्था के रूप में हमारे ग्राम का मुख्य शक्ति  आराधना केन्द्र है । 
 कहा जाता है कि जो हमारे यहां महामार्इ देवी की मूर्ति है, वह बहुत ही सिद्ध एवं जागृत मूर्ति है ।  हमारे ग्राम के कर्इ पंडे पूजारियों एवं भक्तों को इनके साक्षात्कार का अनुभव भी प्राप्त हुआ है।  
मां महामार्इ वरदानसिद्ध मनोकामना शीघ्र पूर्ण करने वाली है । राजा के कार्यकाल में विशुद्ध घी का ही ज्योति जलाने की प्रथा थी ।  धीरे-धीरे अभावों में तेल ज्योति भी प्रारंभ हुआ । 
कहा जाता है कि कलचूरी राजाओं की कुलदेवी मां महामाया देवी जी थी, अत: तांत्रिक विद्या के लिए इन्हें सर्वप्रथम प्रतिस्थित किया गया था। 
जीर्णोद्धार- इस मंदिर का जीर्णोद्धार अब तक 25 बार हो चुका है। 25वां जीर्णोद्धार का कार्य श्री सोनराज जी जैन द्वारा सन 1964 में कराया गया । नवागढ़ के महामार्इ की पूर्ति के बारे में कहा जाता है जब मंदिर का जीर्णोद्वार हुआ तो स्थापित मूर्ति को उस स्थान से नहीं हटाना था, चूंकि मंदिर की दीवाल ढहने के कारण प्राचीन मूर्ति क्षतिग्रस्त ना हो, इस उद़देश्य से ग्राम के आचार्यो से विचार विमर्श कर मंदिर के निर्माण होते तक मूर्ति को तालाब के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे रख दिया।


मंदिर के जीर्णोद्वार के बाद पुन: मां महामार्इ की मूर्ति को मंदिर में पुन: प्रतिस्थापित करने के लिए उठाने का जब प्रयास किया गया तो मूर्ति हिली तक नहीं । तब हमारे गांव के देवी भक्त लोग पूजा-अर्चना अनुष्ठान से देवी जी का मान मनव्वल कर क्षमाप्रार्थी बन मां से प्रार्थना करने पर मूर्ति पुन: हल्की हो गयी। तत्पश्चात मां की कृपा से ही पुन: अपने प्राचीन जीर्णोद्धार हुए मंदिर में स्थापित हो गयी । जो आज भी है, इस तरह से मां महामार्इ साक्षत हमारे ग्राम नवागढ़ का आस्था का केन्द्र है।
मुख्य मंदिर के निकट अन्य देवी देवताओं की मंदिर स्थापित है ।  मां महामाया देवी का उल्लेख श्री दुर्गा सप्तसती नामक पुराण में मिलता है । 
नवरात्रि में समान रूप से महामाया, दुर्गा तथा कन्या पूजन का विशेष महत्व मनाते है तथा सैकड़ो ज्योति-कलश प्रज्जवलित किए जाते है । 

देवी मंदिर 
महामाई के मंदिर से लगा हुआ उत्तर दिशा में भैया लाल जी द्वारा छोटा सा मंदिर देवी का बनवाया गया है।




इसके उत्तर में लगा हुआ सोनकर समाज के द्वारा माँ दुर्गा का सार्वजनिक मंदिर बनवाया है, उसके उत्तर में लगा हुआ, साहू समाज का सती चबूतरा एक छोटे मंदिर के रूप में बनवाया है।
गायत्री मंदिर
मंदिर के पुर्व भाग में अमोला बाई बे. लेड़गा राम साहू सुकुल पारा वाले ने गायत्री देवी की मूर्ति स्थापना की है। जिसमे 50 डिसमिल जमीं चढ़ाया गया है।

माँ शीलता देवी
राजा के जमाने का पुराना मूर्ति खंडित होने पर, ओंकार प्रसाद पिता कमल सिंह द्वारा प्राण प्रतिष्ठा कराया गया है। ग्रामवासी गांव में किसी को चेचक का प्रकोप होने पर शीतला माँ में जल चढ़ाते हैं तथा नारियल फोड़कर होम धूप देते हैं, जिससे प्रकोप शांत होता है।




बिहारी बाबा
गायत्री देवी एवं शीतला देवी के मंदिर बीच में बिहारी बाबा की समाधि है। समाधी से लगा हुआ हनुमान जी की पंचमुखी मूर्ति राम जानकी लखन गणेश जी और साई बाबा की मूर्ति ओंकार ताम्रकार द्वारा मंदिर निर्माण कर मूर्ति का स्थापना कराया गया है।

शंकर मंदिर
महामाई के दक्षिण दिशा में तालाब पार यक्षणी चबूतरा में साहू समाज सार्वजनिक शंकर मंदिर बनवाए है।

काली माँ का चबूतरा
मानाबंद के उत्तर पार में सार्वजनिक कुटी बनाया गया, दशहरा के समय वहां पर महिषासुर वध का अभिनय करते है।

बाबा महेन्द्रनाथ
मानाबंद के पूर्व पार में बाबा महेंद्र नाथ का चबूतरा बनाया गया है।



स्रोत:
{1}रामनाथ ध्रुव जी 
{2} सुरेंद्र चौबे जी 


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