08 February 2017

मनोज श्रीवास्तव रचित - रावणराज के डबरा

रावड़राज के डबरा
विकास करहूॅं विकास करहूॅं,
कहिके भोंदत हे,
जनता हर माटी ए,
तभे तो लोंदत हे,
चुनाव के पहिली अइसनेच गोठियाथे,
तहाॅं पाॅंच साल तक मनीराम सोंटियाथे,
काय विकास करेहे ले तो बता,
ओखर करम के कथा ल मता,
डामरीकरण के भोभरा म,
तीस साल होगे सड़क ल खावत,
हर बरस भुरका कस,
रेती ल छिंचवावत,
फायदा का होइस!
डबरा के डबरा,
कस रे नेता!
नक्टा कुटहा अउ लबरा,
तीस साल म के जगहा,
दे हवय बिजली के खंभा!
चुनाव के बेरा दिखथे,
तहाॅं पाॅंच साल ले छू-लंबा,
बता तो के झन के,
गरीबी कारड बनवाय हे,
अरे! बनवाय हे तेखरो करा,
ठोमहा भर गनवाय हे,
अउ अभी संविदा में,
के झन योग्यता वाले के लगे हे!
जेन हर 70 अउ 80 गने हे,
उंखरे भाग हर जगे हे,
तेखरे सेती कहिथंव,
पापी मन ल मिलके काट डरवर,
अउ रावड़-राज के डबरा ल,
राम-राज ले पाट डरव।
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