तैं कइसे कहि देबे धिक्कार हे,
अरे! सबो कुकुर ल भूंके के,
बरोबर अधिकार हे,
फलाना के बिहाव होइस,
फेर बरात नइ लेगिस,
त आनी-बानी बोले के,
का दरकार हे, फेर,
सबो कुकुर ल भूंके के,
बरोबर अधिकार हे,
फलाना के होय पंच,
चाहे ढेकाना के सरपंच,
जउने आगे लाइट म,
ओखरे होगे मंच,
काम-धाम ठीक नइये त,
चमचागिरी के काबर भरमार हे!
फेर,सबो कुकुर ल भूंके के,
बरोबर अधिकार हे,
फलाना घर झगरा होवत हे,
त फलानिन हर भाग गे,
पारा भर चारी के होगे जुराई,
सभापती हे झुरगु अउ टेटकू के बाई,
अरे! अपन ल देख,
दूसर के चुगली म,
तोर का व्यापार हे,
फेर,सबो कुकुर ल भूंके के
बरोबर अधिकार हे।।
08 February 2017
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मनोज श्रीवास्तव जी की रचनाएं
» मनोज श्रीवास्तव रचित - कुकुरवाधिकार