08 February 2017

मनोज श्रीवास्तव रचित - होही भरती

जल्दी होही गुरूजी के भरती,
तैं चिन्ता झन कर,
जल्दी होही गुरूजी के भरती,
भले होगे साल पूरा,
भले होगे साल पूरा,
भले होगे परीक्षा के झरती,
फेर तैं चिन्ता झन कर,
जल्दी होही गुरूजी के भरती।
का करबे!
तुंहरे चिन्ता म टेकत रहेन,
राजनीति के रोटी ल सेकत रहेन,
षिक्षा के स्तर ल नंगद के बढ़ाबो,
गरीब के लइका ल फीरी म पढ़ाबो,
अरे! सुक्खा जलेबी ल बनाबो इमरती,
तैं चिन्ता झन कर, जल्दी होही गुरूजी के भरती।
अभी हमर आनी - बानी के योजना हे,
सबो ल विकास के भरका म बोजना हे,
गाॅंव - गाॅंव सहर कस बनाबो,
करिया - बिलवा ल घलो उज्जर चमकाबो,
उहू मेर हरेली होही,
जेन भुंइया होगे परती,
तैं चिन्ता झन कर,
जल्दी होही गुरूजी के भरती।
बेरोजगरिहा मन बर आही सुनहरा मौका,
चारो मुड़ा विकेन्सी के लगाबो चैका,
नौकरी बर पहली ले कर लेबे तैं सेटिंग,
अउ मन हो जही आऊट, तोरे रइही बेटिंग,
भ्रष्टाचार चुरमुरा के समा जही धरती,
तैं चिन्ता झन कर,
जल्दी होही गुरूजी के भरती।
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