08 February 2017

मनोज श्रीवास्तव रचित - भगवान बना दे चिरई मोला

भगवान बनादे चिरई मोला,
बादर म उड़ जाहॅूं,
दुनिया के मैं छोड़ के चक्कर,
तोर कोरा म आहूँ
तोर मन हे त मछरी बना,
गुड़गुड़ गोता लगाहॅूं,
केंवटा राजा पकड़ही मोला,
ओखर रोजी - रोटी चलाहहूँ
तोर मन हे त मेचका बना,
टरर-टरर टर्राहॅूं,
बादर राजा ल नेवता देके,
पनी ल गिरवाहॅूं,
तोर मन हे कुकुर बना,
भॅूंक - भॅूंक नरियाहूॅं,
रखवारी करहॅूं जाग - जाग के,
मालिक के सेवा बजाहॅूं,
तोर मन हे धान बना,
चाउर घलो बहुराहॅूं,
भूॅंसा घलो बन जाहॅूं मैं हर,
गाय - गरूवा ल जियाहूँ
तोर मन हे त पनही बना,
काॅंटा ले सब ल बचाहूँ
चिरा जहूँ मैं तभोले देवता,
कबाड़ी के काम आहूॅं,
तोर मन हे त कुकरा बना,
कोट - कोट नरियाहॅूं,
फेर झन बनाबे ‘मनखे‘ मोला,
बिगड़े करम म बोजाहॅूं,
मरे म तोला आके प्रभु मैं,
कइसे मुॅंह ल देखाहॅूं।
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